लेखनी प्रतियोगिता - लघुकथा 3- मेहमान
लघुकथा 3- एम
"मम्मी, ये बुआ कब जाएंगी?" मायके आई हुई स्मृति ने अपनी मां से पूछा।
"क्यों?क्या हुआ?" स्मृति की मां बोली।
"अरे मम्मी, हर बार की छुट्टियों में ये यहां मुझसे पहले आ जाती हैं। मैं आपसे अपने मन की कोई बात कर ही नहीं पाती हूं। बचपन से ही देखती आ रही हूं बुआ हर छुट्टियों में हमारे यहां आ जाती हैं। कभी तो उन्हें अपने घर पर छुट्टियां बितानी चाहिए ना।आप तो उन्हें कुछ कहती ही नही।" स्मृति ने थोड़े नाराजगी भरे स्वर में अपनी बात कह दी।
मां उसकी बात सुनकर अपने अतीत में खो गईं। चार चार भाई भाभियों वाले परिवार में इकलौती बेटी थीं वो। जब तक मां बाबूजी जीवित रहे, उनकी खूब आवभगत होती थी। पहले मां का साया सर से उठा, उसके कुछ महीनों बाद बाबू जी भी स्वर्ग सिधार गए। उनके जाने के बाद तो जैसे सब बिखर गया। भाइयों के बीच मन मुटाव बढ़ता ही चला गया।
बाबूजी के जाने के बाद मां, नन्ही स्मृति को लेकर गर्मियों की छुट्टियों में बड़े भाई के घर पहुंची। 2- 4 दिन तो जैसे तैसे कट गए। पर एक रात उनके कानों में भाई भाभी की आवाज सुनाई दी। बातों पर गौर करने से पता चला कि बात उनके बारे में ही हो रही थी। भाभी भाई से बोल रही थी, " कब जाएंगी जीजी? 4 दिन तो हो गए। जब तक मां बाबूजी थे, बात अलग थी। पर अब तो उन्हें खुद ही सोचना चाहिए। मेहमान ज्यादा दिन के लिए आए तो बोझ लगने लगता है। तुम बात करो उनसे। कब आयेंगे जीजा जी उन्हें लेने?"
भाई भाभी को बोल रहे थे, " ऐसा क्यों बोल रही हो? सविता इस घर की बेटी है, मेरी बहन है। उसका जब तक मन चाहेगा वो हमारे साथ रहेगी। ना तुम, ना मैं इस बारे में कोई बात उसके सामने करेंगे! समझी। चलो अब सो जाओ।"
मां के कानों में भाभी की कही बात आजतक गूंज रही है। वो अगले ही दिन वहां से लौट आईं। अब कभी वे अपने मायके जाती हैं तो घंटे दो घंटे से ज्यादा कभी नही रुकतीं।
आखिरकार मेहमान का घर पर रहना इतनी देर का ही सही होता है।
"मां ,मां कहां खो गईं तुम?" स्मृति ने मां को हिलाते हुए बोला।
स्मृति ने जैसे ही बुआ के बारे में कुछ बोलना चाहा, मां ने स्मृति को वहीं रोक दिया और बोलीं, "स्मृति, तुम्हारी बुआ कोई मेहमान नही हैं, तुम्हारी तरह ही वो इस घर की बेटी है। उनका जब मन करेगा वो अपने भाई भाभी के घर रह सकती हैं। रही तुम्हारे मन की बात, तो तुम्हारी बुआ चौबीसों घण्टे तुम्हारे और मेरे चारों तरफ नही रहती। तब तुम मुझसे ये सब बात कर सकती हो। उम्मीद करती हूं स्मृति बेटा, तुम ये बात समझोगी।" इतना कह कर मां उठकर किचन में जाने लगी तो सामने बुआ खड़ी थी और आंखों में आंसू थे।
मां ने उन्हें गले लगाते हुए कहा," आप की आंखों में आंसू? क्या हुआ, दीदी।" बुआ कुछ बोल नही पा रही थी। तब मां ने उनसे कहा,"आप हमारे परिवार का जरूरी हिस्सा हो, दीदी। आपके बिना ये परिवार पूरा नही होगा। मेरे लिए आप और स्मृति दोनों ही परिवार हो, कोई मेहमान नहीं।"चलो अब रोना बंद करो , और बताओ क्या खाओगी? मैं किचन में जा रही हूं।"
बुआ ने मां को कस कर गले लगा लिया और बोलीं, " सविता, तुम भाभी नहीं, मेरी मां हो। मां के जाने के बाद से लेकर आजतक तुमने कभी मायके के अर्थ को बदलने नही दिया। मैंने कुछ अच्छे कर्म किए होंगे जो भाभी के रूप में मुझे दूसरी मां और मायका दे दिया।"
दोनों काफी देर तक एक दूसरे के गले लग अपने आंसुओं से अपने रिश्ते की गर्माहट को महसूस करती रही, तब स्मृति भी उठकर अपनी मां और बुआ के गले लग गई और बुआ से माफी मांगी।
उन तीनों की खिलखिलाहट से पूरा घर गूंज उठा।
प्रियंका वर्मा
3/1/22
Babita patel
01-Feb-2023 05:41 AM
nice
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Abhilasha deshpande
04-Jan-2023 06:23 PM
Beautiful
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Sachin dev
04-Jan-2023 04:44 PM
OSm
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